8TH SEMESTER ! भाग- 134( Eye for An Eye-3)
सौरभ और सुलभ को हिदायत देने के बाद मैं उस फ्लोर के बाथरूम की तरफ बढ़ा... नौशाद का रूम बाथरूम के ठीक बगल मे था, इसलिए वहाँ से गुज़रते वक़्त मैने नौशाद के रूम मे नज़र डाली तो देखा कि वो लोग दिन दहाड़े दारू पी रहे थे....यानी की मेरा काम अब और भी आसान होने वाला था...
मैं चुपके से बाथरूम के अंदर गया और दरवाजे की ओट मे खड़ा होकर अपने जेब से खून की डिब्बी निकाली और उसे रूई पर डालकर मैने रूई को अच्छी तरह से खून मे भिगोया और अपने दाहिने हाथ मे खून से सनी रूई को रखकर उसपर पट्टी बाँध दिया.... अब मुझे इंतज़ार था की कब नौशाद बाथरूम मे आए और मैं उसके सर पर लोहे की ये बॉल सीधे फेक कर मारू... लेकिन उसी वक़्त मेरे दिमाग़ मे ख़यालात कौंधा कि...कही इतने भारी वजन के बॉल से नौशाद की मौत ना हो जाए.....??
मैने उस लोहे की बॉल को अपने दोनो हाथो से उछाला तभी अचानक मुझे बास्केटबॉल की याद आ गयी और मैने सामने वाली दीवार पर खून से एक गोला बनाया और खून से बने उस गोले के अंदर बॉल फेकने लगा.. क्या मै, पागल हो रहा हूँ..?? बॉल फेकते समय मैने खुद से सवाल किया.. क्यूंकि खुदबसे बाते करना, उसे अरमान 2.0 का नाम भी देना... ये किसी नार्मल इंसान की पहचान नहीं थी... खैर, .मेरा निशाना अब भी पहले की तरह अचूक था ये जानकार मुझे थोड़ा प्राउड फील हुआ.. नौशाद का इंतज़ार करते हुए जब मैं बॉल को खून से बने उस गोले पर निशाना साध रहा था तो मुझे वो दिन याद आ रहा था ,जब मुझे दीपिका मैम ने बुरी तरह उन गुन्डो के बीच फँसा दिया था... मुझे वो पल याद आ रहा था जब नौशाद को मैने कॉल किया था और उसने मुझे "चूतिया" कहकर फोन रख दिया था, ऊपर से गौतम के बाप को कॉल करके ये और बता दिया था की मै ग्राउंड मे ही छिपा हुआ हूँ... वरना वो गुंडे तो वहा से जा चुके थे. वो नौशाद की इनफार्मेशन के बाद ही वापस वहा आए थे. उस निशान के अंदर बॉल को बार-बार डालते हुए मैं अमर सर के बारे मे भी सोच रहा था, जो एक समय नौशाद के खास दोस्तो मे से थे लेकिन जब से मैने उन्हे हॉस्पिटल मे ये बताया कि उस दिन मेरी जो हालत हुई उसका ज़िम्मेदार नौशाद है तो उनका चेहरा तमतमा उठा था और उन्होने मुझसे कहा कि
"वो अभिच हॉस्टल जाकर उस साले ,हरामी नौशाद को ज़िंदा दफ़ना देंगे...."
उनके उस दिन के एंग्री यंग मैन वाले रूप को देखकर मैं भी डर गया था ,क्यूंकी अमर सर विदाउट एनी प्लान ,नौशाद पर अटैक कर देते और बाद मे फस जाते... जो मैं नही चाहता था.... उन्हे उस दिन रोकने की एक और वजह ये भी थी मैं नौशाद को अपने हाथो से लाल करना चाहता था....
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जब भी कोई दोस्त,दोस्ती...फ्रेंड ,फ्रेंडशिप के बारे मे बात करता है तो मेरी सोच अरुण,सौरभ,सुलभ से शुरू होकर इन्ही तीनो पर ख़तम हो जाती है और जब भी कोई अपने दोस्त की बात मेरे सामने करता है तो मैं उनके उस दोस्त को अपने दोस्तो से तुलना करता हूँ, मुझे पता है की.. किसी की किसी से तुलना करना गलत बात है, पर ये तो हम इंसानो की प्रवत्ति है.. फिर मै युग पुरुष ही क्यों ना रहू.. ये आदत तो मुझमे भी रहेगी. इसलिए जब भी कोई अपने दोस्तों की बात मेरे सामने करता है तो मुझे ऐसा लगता है जैसे कि उसके दोस्त भी अरुण,सुलभ और सौरभ की तरह होंगे... इसीलिए जब मुझे नौशाद और अमर सर की दोस्ती के बारे मे पता चला तो मैं कुछ देर के लिए थोड़ा मुश्किल मे पड़ गया था कि कही अमर ,नौशाद का साथ ना दे दे ... वरना सबसे पहले अमर सर को मार कर अलग करना पड़ेगा, और मेरा यकीन करो.. मै ये करता भी... श्री अरमान जब गौतम को पेलने से नहीं हिचकिचाया तो फिर.... Anyway, पर हक़ीक़त मेरी शंका के विपरीत थी.... उस दिन हॉस्पिटल मे जब मेरे एक हाथ से प्लास्टर उतारा गया था और अमर सर मुझसे मिलने आए थे तो उन्होने कहा था कि
"अरमान...नौशाद बहुत सेल्फिश है.... मौका पड़ने पर वो मुझे भी इस्तेमाल करके कंडोम की तरह फेक सकता है... इसलिए मैं तेरे साथ हूँ...."
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"ये साले सौरभ और सुलभ ने नौशाद को इधर नही भेजा..??? .कुत्तो कर क्या रहे हो, बे ...?? साले कही भूल तो नही गये और फिर से हिलाने बैठ गये हो...?"खुद से बाते करते हुए मैने अपने चेहरे से स्कार्फ उतारा और नौशाद का इंतज़ार करने लगा और
कुछ देर बाद आख़िरकार वो वक़्त भी आ गया ,जब नौशाद सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुए बाथरूम मे घुसा.... वो दारू के नशे मे धुत्त एक गाना गुनगुनाते हुए सिगरेट पी रहा था.... बाथरूम के अंदर आकर नौशाद एक तरफ अपने पैंट की ज़िप खोल कर खड़ा हो गया
"हाउ आर यू, नौशाद सर..."पट्टी का आख़िरी सिरा टाइट करते हुए मैने एकदम रिलैक्स होकर पीछे से कहा
"कौन है बे... हरामी.."
नौशाद पेशाब करते हुए ही पीछे मुड़ा और पीछे मुझे खड़ा पाकर अगले पल ही उसकी पेशाब रुक गयी ,अपना मुँह फाड़कर वो एकटक मुझे देखने लगा.... वो कभी मुझे देखता ,तो कभी मेरे दाहिने हाथ मे खून से सनी पट्टी को और बाद मे उसने बाथरूम के गेट की तरफ देखा... जो नौशाद के अंदर घुसने के तुरंत बाद ही सौरभ और सुलभ की बदौलत बाहर से बंद हो चुका था और बाथरूम के पास वाले एक रूम मे स्पीकर मे फुल साउंड मे गाना भी बजने लगा था, ताकि अंदर कई आवाज़ बाहर ना जाये.... दरवाजे के साथ-साथ ही उस फ्लोर मे जितने रूम थे उनके गेट को भी सौरभ और सुलभ ने बाहर से लॉक कर दिया था... ताकि एक्का -दुक्का जो लड़के हॉस्टल मे मौजूद थे, वो गलती से भी अपने रूम से निकल कर मुझे डिस्टर्ब ना करे....
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" दरवाजा बाहर से बंद है सर ...अब उधर क्या देख रहा है..."बॉल को ज़मीन पर पटक कर मैने पीछे दीवार के सहारे टिकाए हुए हॉकी स्टिक को अपने हाथ मे लिया, लेकिन अपना हाथ, हॉकी स्टिक के साथ पीछे ही किये रहा, ताकि नौशाद को मालूम ना चले कि मेरे पास हॉकी स्टिक है...
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"तू अरमान... यहाँ... मै जरूर सोना देख रहा हूँ,कोई.. वरना तेरी तो मैने अच्छा बजाई,गौतम के गुंडे से... ."अपनी आँखे मलते हुए नौशाद ने बड़बड़ाया...
"सपना नहीं..सच है ये... The Name is Arman..."
"अरमान..तू.. तू सच मे यहाँ है..?? तू कब आया...?? मै तो आज ही ये हॉस्टल छोड़ कर जाने वाला था..."
"क्यूँ, फट गयी ना....नाम सुन कर..."
"फर्स्ट ईयर के उन दो चोमू लड़को की तरह समझा है क्या मुझे... मै नौशाद हूँ... नौशाद. मैने भी हॉस्टल मे अपनी अलग गैंग बना रखी है... और नौशाद किसी से नहीं डरता... पर तू यहाँ क्या कर रहा है..."
"तेरी माँ से प्यार करने आया हूँ...जा बुला कर ला और यदि आने से मना कर दे तो बोल देना की नंगी होकर वीडियो कॉल करें मुझे... इस विश्व की सबसे बडी रखैल है तेरी माँ.. ट्रिपल W है तेरी माँ... WWW= World Wide Whore"
नौशाद का आधा होश दारू ने उड़ा रखा था और उसका आधा होश मेरी इन बातो ने उड़ा दिया.... वो ये भूल गया कि जब मैं यहाँ आया हूँ तो कुछ तो सोचकर ही आया होऊँगा.. पर नहीं, नौशाद मेरी गाली से एक दम तमतमा गया और तुरंत बिना कुछ सोचे समझें मेरी तरफ दौड़ा. उसे अपनी तरफ आता देख मैने अपने हाथो मे रखे हॉकी स्टिक को मजबूती से पकड़ा और अपनी तरफ आते हुए नौशाद के थोबडे पर धौंस दिया... थोबड़े पे हॉकी स्टिक लगते ही नौशाद झन्ना गया और आँखे लपलपाते हुए लड़खड़ा कर एक किनारे गिरा ... लेकिन उस साले मे दम था,वो मुझे मारने के लिए तुरंत उसी वक़्त उठ खड़ा हुआ और मैं अबकी बार उसे हॉकी स्टिक से ठोकता उसके पहले ही उसने अपना सर झुकाया और दोनो हाथो से मेरी कमर को पकड़ कर मुझे दीवार की तरफ धक्का दे दिया जिसकी वजह से मेरा सर और मै दीवार से टकराया ....
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"रुक... साले, अभी तुझे बताता हूँ..."नौशाद को गाली बकते हुए मैं दीवार से हटा ही था कि नौशाद ने फिर से अपना सर झुकाया और दोनो हाथो से मुझे दीवार पर एक और बार ज़ोर से धकेला ,जिसके कारण मेरा सर और पीठ एक बार फिर दीवार से बुरी तरह टकराया....
"तेरी माँ की.."दूसरी बार दीवार से टकराते ही मै खीज उठा... की इसे मारने के प्लान से तो मै यहाँ आया था, लेकिन मार ये रहा है मुझे...
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मैने जल्दी ही खुद को संभाला और एक दम सीधे खड़ा हुआ... नौशाद ने इस बार भी वही पैतरा आजमाना चाहा लेकिन अबकी बार मैने उस हरामी के सर को पकड़ कर रोका और अपनी पूरी ताकत से उसके सिर के बाल उखाड़ने लगा... मैने सोचा था कि अबकी बार नौशाद कामयाब नही होगा और जोर से चीखेगा... लेकिन उस साले के अंदर शराब पीने के बाद भी गजब की ताकत थी... उसने पहले मेरे दाहिने हाथ मे खून से सनी पट्टी को ये सोचकर ज़ोर से दबाया कि ,वहाँ सच मे कोई घाव है और मै दर्द के कारण उसके बाल छोड़ दूंगा... उसके ज़ोर से मेरा हाथ दबाने के कारण कोई घाव ना रहने के बावजूद मुझे दर्द हुआ... पर उतना नहीं की उसे छोड़ दू... बल्कि मै और भी तेज़ी से उसके सर के बाल खींचने लगा... नौशाद ज़ोर से चिल्लाया.. वो मुझे जहा पता वहा मुक्के मारते हुए पीछे खिसकने की कोशिश कर रहा था और वही उसके मुक्के खाते हुए मै उसे बाल पकड़ कर अपनी तरफ खींच रहा था... वो चिल्लाते हुए मुझे मारता रहा,लेकिन मैने उसे नहीं छोड़ा... जिसका नतीजा ये हुआ की... मेरे हाथ मे उसके बाल टूट कर आ गये... और वो फाइनली आजाद हुआ...
"तेरा माँ का... सूअर की औलाद..." अपने सर पर हाथ फिरते हुए उसने एक बार फिर से अपना वही पैतरा अपनाया और मुझे दीवार की ओर जोर से फेका और फिर बुरी तरह दीवार से जा टकराया
"साला तूने मुझे समझ क्या रखा है... एक ही टाइप से मार रहा है "
जब नौशाद फिर से अपना सिर झुका कर मेरी तरफ बढ़ा तो अबकी मैने उसके सर को पकड़कर पीछे दीवार से दे मारा.. दीवार से सिर टकराने के कारण नौशाद फिर एक बार चीखा. मैने नीचे पड़ी हॉकी स्टिक को उठाया और पूरी ताक़त से उसके पीठ पर मारना शुरू कर दिया. मेरे द्वारा हॉकी स्टिक के दो -तीन प्रहार से ही नौशाद ढीला पड़ गया , उसका शरीर पस्त होने लगा और वो वही फर्श पर औधे मुँह गिरा... तब जाकर मै रुका... साले ने जान निकाल दी.huuuuuu... पर मजा बहुत आया.
नौशाद फर्श ओर पडे पडे कभी अपना सर सहलाता तो कभी अपने पीठ पर हाथ फेरता... वही दूसरी तरफ मै हॉकी स्टिक को पकड़ कर उसी के पास बैठा हांफ रहा था....
"मैने कहा था ना.. तुझसे... नौशाद कि... अपना पिछवाड़ा संभाल कर रखना वरना ऐसा मारूंगा की मुँह से सब कुछ करना पड़ेगा..."
नौशाद कुछ नही बोला और अपनी आँखे कर ली ,जिसके बाद मैने इत्मीनान से उसके बॉडी के हर उस अंग को तोड़ा जो मेरा टूटा था.... हॉकी स्टिक से मारते-मारते जब मैं थक गया तो बेहोश हो चुके नौशाद को मैने दीवार के सहारे टिकाया और लोहे की उस बॉल को उठाकर कर उससे थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया....
"अपने सर को दीवार के पास बने गोले से सटा क्यूंकि ये लोहे की भारी भरकम बॉल जो मेरे हाथ मे है ,उसे बास्केटबॉल और तेरे सर का बास्केटबॉल कोर्ट का रिंग समझ कर... तेरे सर पे फेकूंगा... मस्त सर फूटेगा तेरा... एकदम धाँसू खून निकलेगा... जैसे मेरा निकला था...." नौशाद की आँखे अब भी बंद थी और उसकी तरफ से कोई हरकत ना होता देख मैने उसके सर को निशाना बनाकर लोहे की बॉल उछाल दी...बॉल पहले दीवार पर और फिर उसके सर से टकराई और सर से टकराते ही खट्ट की आवाज़ हुई... जिसके बाद वो खट्ट वाली आवाज़ आगे भी कई बार हुई, यानी मैने कई बात लोहे कि बाल को उसके सर पर मारा और तब तक मारता रहा जब तक की खून उसके सिर से रिसकर उसके चेहरे पे मुझे नहीं दिखा...
मुझे उसे अब छोड़ देना चाहिए था ,लेकिन मुझे अब मज़ा आने लगा था... मेरे खयाल से ये मेरे खून मे था की खून देखकर मुझे बहुत सुकून मिलता था. मैने कई बार ऐसे ही उसके सर को लोहे की बॉल से फोड़ा और आख़िरी मे उसके फेस पर दे मारी...बॉल सीधे जाकर उसके नाक के नीचे लगी.एक बार फिर वही जानी पहचानी आवाज़ हुई और वही जाना पहचाना लाल रंग उसके मुँह और नाक से निकला.... उसका शायद ऊपर वाला होंठ फट गया था, बाल लगने के कारण...